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देश की सांसों में बसे क्रिकेट का क, ख, ग

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‘दीप भव’ नहीं पढ़ा, तो क्या पढ़ा?

भारत में क्रिकेट महज एक खेल नहीं है. यह भारतीयों की रग-रग में समाया हुआ है. अंग्रेजों के इस खेल के प्रति हमारा प्रेम इस कदर है, जैसे ‘यशोदा मैया और कन्हैया’ अपना न होकर भी अपने से बढ़कर. अब खेल है, तो खिलाड़ी हैं, उनके ज्ञात-अज्ञात किस्से हैं, क्रिकेट का इतिहास है, उसकी शुरुआत है, जैन्टलमेंस गेम्स को किस कदर शाही घरानों का आसरा मिला और आज का दिन है, जब भारत विश्व क्रिकेट का बादशाह बन गया है. कुल मिलकर इस बार ‘दीप भव’ 2024 के अंक में क्रिकेट के क, ख, ग... के साथ ही रोकच विषय वस्तु के साथ-साथ ज्वलंत विचारपूर्ण आलेख हम प्रस्तुत कर रहे हैं. यह अंक बच्चों-किशोरों- युवाओं समेत प्रत्येक आयुवर्ग से जुड़ी विषयवस्तु से परिपूर्ण है. ‘दीप भव’ 2024 में क्रिकेट से जुड़ी सामग्री के अलावा रोमांच के शिखर पर ले जाने वाली कहानियां, ‘काॅमन मैन’ के नाम से मशहूर कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण के जीवन के अनछुए पहलू, निस्पृही जीवन के आदी रहे गांधीजी के महात्मा बनने का सफर जैसी इतिहास के सागर से निकाली जानकारियां पढ़ने मिलेगी. यदि आपने 2024 के ‘दीप भव’ अंक की प्रति सुरक्षित नहीं कराई तो आप अनंत ज्ञान के खजाने से वंचित रह जाएंगे.

क्रिक या बोल्स किससे जन्म क्रिकेट ?

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि क्रिकेट खेल ‘बोल्स’ खेल से उपजा है. जिसमें बल्लेबाज गेंद को लक्ष्य की तरफ जाने से रोकता है. वहीं गेंद के तौर पर भेड़ के ऊन से बना गोला तथा पत्थर व लकड़ी के गोले का भी जिक्र मिलता है. सन् 1597 में जन्मा क्रिकेट 18वीं शताब्दी तक एक मान्य खेल में तब्दील हो गया. 19वीं व 20वीं शताब्दी में इसे वैश्विक दर्जा प्राप्त हुआ. अंग्रेजों द्वारा शुरू किए गए व उनके प्रभावग्रस्त क्षेत्रों में ही खेल होने के कारण उनका दबद‌बा था और खेल के नियम व कायदे उन्हीं के हिसाब से बनते थे. पर अब स्थिति बदल गई है. एशियाई देशों ने उनका प्रभुत्व तोड़ दिया है. नई व्यावसायिक संभावनाओं को जगाने का काम भारत ने किया है और इसीलिए भारत अब विश्व क्रिकेट का नया शक्तिकेंद्र बन गया है.

सुशील दोशी

‘फिरकी’ से ‘रफ्तार’ की बम्पर फसल

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय क्रिकेट टीम में आमूलचूल परिवर्तन देखा गया है. अब तो भारतीय टीम विदेशी सरजमीं पर भी जीतने लगी है. ऑस्ट्रेलिया जैसी महाशक्ति को उसने लगातार दो बार उसी की धरती पर शिकस्त दी. वरना, अधिकांश विदेशी दौरों पर भारतीय टीम शिकस्त झेलती थी. पहली बात तो यह है कि टीम में जोश आया है. प्रतिभाएं निखर कर आ रही हैं. अंडर-19 आयु वर्ग और आईपीएल से कई प्रतिभाएं मुख्य टीम को मिली हैं. भारतीय क्रिकेट ने ऐसा दौर भी देखा है जब स्पिनर ही उसके गेंदबाजी आक्रमण की धुरी थे लेकिन अब स्थितियां काफी बदल चुकी हैं. तेज गेंदबाजों की ‘बम्पर फसल’ लहलहा रही है.

अयाज मेमन

हमको मिटा सके ये जमाने में दम नहीं, हमसे जमाना खुद है जमाने से हम नहीं...

भारत में क्रिकेट में क्रिकेट की शुरुआत भले ही अंग्रजों ने की हो लेकिन भारतीयों ने अपनी प्रतिभा के बदौलत इस खेल को नई ऊंचाइयों पर ही नहीं पहुंचाया, अपितु दुनिया में अपना लोहा भी मनवाया. 1922 में दिल्ली में पहला ऑल इंडिया क्रिकेट टूर्नामेंट खेला गया. इसमें महाराजा ऑफ पटियाला इलेवन को जीत मिली थी. भारतीयों के दिलो-दिमाग में पनपते क्रिकेट प्रेम को देखते हुए अप्रैल 1927 में बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया (बीसीसीआई) का विधिवत गठन किया गया. 1932 में भारत को जैसे ही आईसीसी के टेस्ट खेलने वाले देश के रूप में पूर्णकालिक सदस्यता मिली. यहां से शुरू हुआ सफर अनवरत जारी है. भारतीय टीम द्वारा खेले गए कुछ मैच चुनिंदा खिलाड़ियों या पूरी टीम की बदौलत आज भी यादगार हैं.

मतीन खान

क्रिकेट के ‘राजा-महाराजा’

भारतीय क्रिकेट के तकरीबन 300 साल पुराने इतिहास को यदि हम देखें तो जाहिर है आज इसका स्वरूप काफी बदल चुका है. भारतीय क्रिकेट का परिचालन आज काफी पेशेवराना तरीके से किया जा रहा है. क्रिकेटरों का रूप तो बदला हुआ ही है लेकिन बल्ला, स्टम्प, बेल्स और यहां तक कि इस उम्दा खेल के मैदान का आकार तक पिछले कुछ दशकों में परिवर्तन की बयार से बच नहीं सका है. भारत में क्रिकेट की मौजूदगी का सबसे पहला उल्लेख अब से कोई 300 साल पहले (1721) मिलता है. जहाज के अंतहीन सफर से कुछ कारोबारी बेहद ऊब चुके थे. उन्होंने तब के कैम्बे (आज खंभात, गुजरात) में क्रिकेट का मुकाबला खेला था. सो, गुजरात को भारत में क्रिकेट की जन्मस्थली का दर्जा देना गलत नहीं.

अभिलाष खांडेकर

खून के रंग भी उड़े क्रिकेट में!

सज्जनों के खेल क्रिकेट में खून भी बहा है और खिलाड़ियों की जान भी गई है. टेस्ट क्रिकेट श्रृंखला को येन-केन-प्रकारेण जीतने के लिए कप्तानों ने हिंसक गेंदबाजी की रणनीति भी अपनाई. 1932-33 में डगलस जॉर्डिन के नेतृत्व में जब इंग्लैंड की टीम आस्ट्रेलिया दौरे पर गई थी तब यह टेस्ट सीरीज ‘बॉडीलाइन’ गेंदबाजी के कारण विवादास्पद रही. जार्डिन ने अपने तेज गेंदबाजों को आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों के शरीर को निशाना बनाकर गेंदबाजी करने का निर्देश दिया था. इंग्लैंड की उस टीम में भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान नवाब मंसूर अली खान पटौदी के पिता नवाब इफ्तिखार अली खान भी शामिल थे. उन्होंने अपने कप्तान का खुला विरोध किया था.

हर्षवर्धन आर्य

आइए अब आपको सुनाते हैं मैच का ‘आंखों देखा हाल’

‘आंखों देखा हाल’......कितना ख़ूबसूरत है ये शब्द. दिलचस्प ये है कि टीवी हमेशा से हमारे जीवन का हिस्‍सा नहीं था. जब टीवी नहीं था, तब भी खेलों के मुक़ाबले होते थे और तब भी उनका आंखों देखा हाल आया करता था. ये रेडियो के ज़माने की बात है. और रेडियो के उस सुनहरे दौर में कमेंटरी सुनने का जुनून बहुत ज़्यादा हुआ करता था. अगर दुनिया में कोई कमेंटरी सबसे ज़्यादा लोकप्रिय रही है तो वो है क्रिकेट की कमेंटरी. और इसका इतिहास भी बड़ा मज़ेदार है. क्रिकेट की शुरुआत भले ही अंग्रेजों ने की हो लेकिन क्रिकेट की रेडियो कमेंटरी की पैदाइश ऑस्‍ट्रेलिया की है.

यूनुस ख़ान

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‘खुर्ची’

'सत्ते'पासून 'सेक्स'पर्यंत : 'तिला' बळकावण्याच्या बेधुंद खेळाचा भन्नाट शोध

लोकमत दीपोत्सव २०२४

अंक नव्हे, उत्सव

दीपोत्सव
तीन लाख प्रतींचा टप्पा ओलांडून जाणारं
मराठी प्रकाशनविश्वातलं सन्मानाचं,
देखणं आणि समृद्ध पान

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दीपोत्सव 2023

3,00,000 लाखांचा विक्रमी खप ओलांडणारं
मराठी प्रकाशन विश्वातल्ं समृध्द पान

दीपोत्सव 2022

3,00,000 लाखांचा विक्रमी खप ओलांडणारं
मराठी प्रकाशन विश्वातल्ं समृध्द पान

दीपोत्सव 2020

‘दोन लाखांचा’ खप आणि वाचकप्रियतेचं
शिखर गाठणारी समृध्द गोष्ट.

दीपोत्सव 2019

३,०१,२६७ प्रतींचा खप ओलांडणारं
मराठी प्रकाशनविश्वातलं सन्मानाचं,
देखणं आणि समृद्ध पान

चहा पीत, चिवडा खात राजकारण्यांना शिव्या घालता?

-ती आपलीच माणसे आहेत, आपणच त्यांना 'खुर्ची'वर बसवतो, हे विसरलात की काय?

... घराबाहेर पडा!

देशातल्या राजकीय खुर्च्यांचे डागाळलेले चारित्र्य कसे सुधारायचे?- या प्रश्नांची आठ उत्तरे

- योगेंद्र यादव

राज्यशक्ती, धनशक्ती, ज्ञानशक्ती आणि जनशक्ती

या चार पायांवर उभी असूनही समाजाची खुर्ची बरेचदा मोडते. कारण?

आठ अब्ज 'खुर्च्या' नैतिक अधिकार गाजवू शकणारी माणसे संपली, हे समाजाचे दुर्दैव आहे...की संधी?

- डॉ. अभय बंग

खुर्ची बळकावण्याच्या ईर्ष्येपायी

डोके फिरलेली माणसे वाट्टेल त्या थराला का जातात?

खुर्चीवरला विंचू

सत्तेचा मोह माणसाच्या गुणसूत्रातच मिसळलेला आहे का?

'खुर्ची'च्या लालसेचे मानसशास्त्र.

- डॉ. शिरीषा साठे

नकारात्मक शैथिल्याची

भ्रष्ट वाळवी लागून भुसभुशीत होऊन गेलेल्या

नोकरशाहीच्या खुर्चीची गोष्ट

सायबाची खुर्ची

प्रशासनाची सर्वशक्तीमान खुर्ची

कमरेत इतकी वाकलेली का?

- महेश झगडे

'पुढच्या दहा वर्षात अमुक कर्करोगाने

तुम्ही मरण्याची शक्यता ४०% आहे' अशी माहिती समजा एआयने तुम्हाला आजच दिली, तर तुमचे काय होईल? तुमचे शरीर कुठे 'तुमचे' आहे? खुर्चीचे सोडा, आपला आपल्या शरीरावर तरी हक्क उरला आहे का?


- डॉ. भूषण शुक्ल

प्राणी युक्त्या वापरून बघतात; टोळ्या फोडतात,

शत्रूला तात्पुरता 'मित्र' बनवून 'युती'ही करतात! जंगलातली खुन्नस आणि 'खुर्ची'

जंगलातल्या सत्तासंघर्षाचा वेध घेणाऱ्या संशोधकांची थक्क करणारी निरीक्षणे आणि निष्कर्षांची कहाणी.


- वंदना अत्रे

आता सायेबच 'खुर्ची'करता पक्ष फोडणार किंवा सोडणार,

तर मग 'सायबाचा कार्यकर्ता' सतरंज्या का उचलील?

'खुर्ची'वर्नं खाली? - नाय जमनार!

राजकीय पक्षांच्या कार्यकर्त्यांच्या दुनियेत आणि डोस्क्यात चाललेल्या कल्लोळाची कथा.

- श्रीनिवास नागे

शरीराचे सुख देण्या-घेण्याचा प्रवास

अवयवांशीच नव्हे, दोन मनांशीही जोडलेला असतो; हे उमगेनासे झाले, की गणिते बिघडतात आणि पलंगावर खुर्ची येते... पुढे काय होते?

पलंगावरचे 'खेळ' : सेक्स अँड रिलेशनशिप थेरपीस्टच्या अनुभवांची दारे उघडणारा लेख

- डॉ. सबीहा

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बाबुजी ते आराध्या अशा चार पिढ्यांमध्ये धावणाऱ्या ‘संस्कारा’च्या नदीविषयी सांगणारे अमिताभ बच्चन... बिल गेट्स या ‘श्रीमंत’ माणसाशी लग्न झाल्यानंतर ‘गरिबी’शी नातं जोडणारी मेलिन्डा गेट्स... ‘पैसा कुछ नही होता यार’ अशी खात्री देणारा शाहरूख... कार्पोरेट बोर्डरूमच्या पलीकडले रतन टाटा, नारायण मूर्ती आणि आनंद महिंद्रा... नोबेल विजेतेडॉ. अभिजित बॅनर्जी...मसुरीजवळच्या जंगलात राहणारे रस्किन बॉन्ड ... ही ‘असली’ माणसं कुठं भेटणार ‘दीपोत्सव’शिवाय?
जिथं रस्ता नाही, पण मोबाईलचं नेटवर्क आहे, अशा कानाकोपऱ्यांतल्या माणसांच्या आयुष्यात डोकावत कोण भटकणार ‘दीपोत्सव’शिवाय?
काबूलमधल्या शाळेत, इस्रायलमधल्या तेल अवीव या ‘स्मार्ट सिटी’त,
भारत-बांगला देश सीमेवरल्या एन्क्लेव्हमध्ये तरी कोण जाणार ‘दीपोत्सव’शिवाय?
कन्याकुमारीपासून निघून थेट श्रीनगरपर्यंत बत्तीस दिवस एकतीस रात्रींच्या थरारक रोडट्रीपमध्ये भेटलेल्या गावांच्या, शहरांच्या, विजयांच्या, पराभवांच्या, बदलांच्या आणि बदलत्या माणसांच्या कहाण्या कोण शोधणार ‘दीपोत्सव’शिवाय?‘रामनाथ गोयंका अवॉर्ड फॉर एक्सलन्स इन जर्नलिझम’ या प्रतिष्ठेच्या राष्ट्रीय पुरस्कारानं गौरवलेला,संपादनापासून मांडणीपर्यंत सतत नवे प्रयोग करणारा आणि मराठी वाचकांसाठी दरवर्षी एका नव्या अनुभवाचं दार उघडणारा दिवाळी अंक!
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दीपोत्सव २०२४
अंक नव्हे, उत्सव!
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