हर साल गुलाबी पंखों वाले फ्लेमिंगो हजारों किलोमीटर का सफर तय करके भारत में आते हैं. कई लोगों के मन में सवाल आता होगा कि अपने बड़े-बड़े पंखों को पसार कर तेजी से यह यात्रा करने के दौरान क्या वह थकते नहीं? चलिए भारत की सरजमीं के स्वर-रंगों में अपने पंखों को सराबोर कर लेने के लिए छटपटाने वाले परदेशी साधकों की दीवानगी भरी दुनिया में...
अभिजात संगीत की दीवानगी के चलते दुनियाभर से भारत की राह पकड़ने वाले दीवाने मुसाफिर! यहां की रग-रग में बसे गायन-वादन-नृत्य के जादू को मुट्ठी में भर लेने के लिए जान की बाजी लगाने वाले, यहां का संगीत अपने देश में लोकप्रिय बनाने का सपना देखने वाले, संगीत सीखते-सीखते यहां भारत को ही अपना घर बना लेने वाले! इस संगीत की खातिर संस्कृत, तमिल, कन्नड़, बंगाली, मराठी सीखने वाले और छोले-पुरी, डोसे की याद में बेचैन हो जाने वाले...!
यह यात्रा भले ही परीक्षा लेने वाली हो, लेकिन इस देश की मिट्टी में मौजूद सत्व और सूर्यकिरणों से ऊर्जा पाकर बहने वाले जल तृप्त कर देने वाले हैं. जीने की समझ और प्रतिकूल परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करने की ताकत देने वाली है.
मेहनत की कमाई को सहेजते हुए यहां रहने के दौरान यहां के लोगों, वातावरण, जीने के तौर-तरीकों, खाद्य संस्कृति के साथ तालमेल बिठाने में न जाने कितनों को कई पापड़ बेलने पड़े होंगे; तो फिर ये मुसाफिर यहां के स्वर-लय-ताल से नाता क्योंकर जोड़ लेते हैं?
- वंदना अत्रे