बचपन में ही अपने पिता को खो देने के बाद जीवन के कठिन संघर्षों से जूझते हुए आॅस्कर पुरस्कार हासिल करने वाले प्रख्यात संगीतकार की कहानी
जब दिल में कहीं भीतर बहुत गहरे दर्द की एक टीस उभरती है,
भविष्य की अनिश्चितता के घने अंधकार को भुला पाना मुश्किल होता है,
तब संगीत और उसकी सुरलहरियांं हमेशा साथ हों तो वह भी दिलो-दिमाग को सुकून नहीं दे पातीं.
यह सच है कि मेरा संगीत दुनियाभर में फैल गया है,
लेकिन इस गाने से परे के ‘रहमान’ को कोई ज्यादा जानता ही नहीं!
इससे पहले तो वह था टपकती हुई छत वाले घर में रहने वाला एक आम इंसान,
जिसने उम्र के नौवें पड़ाव में ही पिता को गंवा दिया,
सारे सपने भुलाकर बस रोजी-रोटी की जुगाड़ में फंसा ‘दिलीप’...
मेरी कामयाबी बहुत उलझी हुई है...और नाकामयाबी भी!
बात दस साल पहले की है. वह दिन आज भी मुझे याद है...
22 फरवरी 2009 चार-चार किलो वजन और 24 कैरेट सोने की साढ़े तेरा इंच ऊंचाई वाली दो प्रतिमाएं लेकर मैं और सायरा होटल फोर सीजन पर पहुंचे तो आधी रात उलट चुकी थी. मोबाइल बाहर निकाला और भारत में मौजूद कुछ खास दोस्तों को मैसेज टाइप किया,
ह्लहङ्मल्ल ्र३. अफफह्व.
बस. आगे? और क्या लिखा जाए? लिखना चाहिए भी या नहीं? उस रात जो हुआ और उससे भी परे बहुत-कुछ जो मेरे दिल में गूंज रहा था!
लॉस एंजिल्स के कोडेक थिएटर में चमक-दमक से भरपूर रंगमंच पर उस रात 81वें आॅस्कर समारोह में जो कुछ हो रहा था, उसे पूरी दुनिया देख रही थी. और उसकी ओर न केवल हॉलीवुड बल्कि भारतीय चहेतों की भी नजरें पहली बार ही गड़ी हुई थीं. उस दिन पूरी दुनिया ने हॉलीवुड के गोरे, सुंदर दमकते सितारों के बीच दो सांवले भारतीयों को समारोह में आकर सोने से सजी प्रतिमाएं बड़े अभिमान के साथ लेकर जाते हुए देखा.
बेस्ट साउंड मिक्सिंग का पुरस्कार लेते वक्त ‘ळँ्र२ ्र२ ४ल्लुी’्री५ुं’ी’ कहता हुआ सपनीली आंखों वाला रसूल पुकूटी देखा, तो कई भारतीयों को लगा मानो वह एक सपना ही देख रहे हैं.
उसके कुछ ही पलों के बाद ‘बेस्ट ओरिजिनल स्कोर’ के लिए मेरा नाम ‘ए.आर. रहमान’ लिया गया. नाम सुनकर मैं कुछ पल के लिए सुन्न सा हो गया...कुर्सी से उठते वक्त बेसाख्ता मेरे मुंह से निकला ‘ओह..’ शायद किसी ने न सुना हो, लेकिन एक ‘देसी’ कलाकार के लिए उस सभागृह में जो तालियों की गड़गड़ाहट गंूजी, उसे उस रात पूरी दुनिया ने सुना. उस रात अंग्रेजी पर ही झूल रहे सभागृह ने पहली बार एक भारतीय वाक्य सुना,
‘एल्ला पुग्ग्झम इरायवनुके...’
गॉड इज ग्रेट!
पहले आॅस्कर पुरस्कार की खुशी जज्ब भी नहीं हुई थी कि ‘बेस्ट ओरिजिनल सांग ’ के दूसरे पुरस्कार के लिए भी उसी रहमान के नाम का ऐलान हुआ, तब मेरे साथ मेरी मां है, यह केवल मुझको अकेले को महसूस हो रहा था.
...और उसके बाद, उस रात आंखें बंद करके, दोनों हाथों की मुट्ठियों को आसमान की ओर फेंकते हुए मैं खुली आवाज में गाता रहा...
रत्ती रत्ती सच्ची मैंने जान गंवाई है,
नच-नच कोयलों पर रात बिताई है,
अंखियों की नींद मैंने फूंक से उड़ाई है.
गिन-गिन तारे मैंने उंगलियां जलाई है,
- ए. आर. रहमान