शेख दीन मोहम्मद, 15 जनवरी, 2019 को जिनकी किताब को छपे 225 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर गूगल ने विशेष डूडल से सम्मानित किया था. क्या थी उस शख्स की कहानी...?
पहला हिंदुस्तानी था शेख दीन मोहम्मद, जिसकी किताब वर्ष 1794 में ‘द ट्रैवल्स ऑफ दीन मोहम्मद’ आयरलैंड में अंग्रेजी में छपी. वह पहला व्यक्ति था जिसने लंदन के पॉश इलाके पोर्टमैन स्क्वायर में 1810 में खोला था पहला हिंदुस्तानी रेस्तरां हिंदुस्तानी कॉफी हाउस. वह पहला इंसान था जिसने ब्रिटेन के समुद्र के किनारे बसे शहर ब्राइटन में भारतीय औषधीय वाष्प स्नान घर की शुरु आत की और चम्पू (मालिश), जिससे अंग्रेजी का शब्द शैम्पू बना, से अंग्रेजों को परिचित करवाया.
- अरुण सिंह
भारत में बहुत पुराना है पोस्टमैनों का इतिहास. लेकिन आधुनिक पोस्टमैन अंग्रेजी राज की देन है. पढ़िए भारत में पोस्टमैनों की दुनिया का दिलचस्प इतिहास.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1619 में सूरत, आगरा, भड़ौच और अहमदाबाद में अपनी व्यापारिक कोठियां बनाने के बाद जब कामकाज का विस्तार किया तो संदेश भेजने के लिए महाजनी डाक या फिर शाही डाक सेवा की ही मदद ली. भरोसा नहीं था उनको भारतीय डाकियों पर, क्योंकि उनका विचार सत्ता पर भी काबिज होने का था. इसलिए कंपनी डाक सेवा आरंभ की. आधुनिक डाक सेवा का आरंभ 1727 में हुआ जब कोलकाता में पहला डाकघर स्थापित हुआ. हाल के सालों में काफी बोझ पड़ा है पोस्टमैनों पर. तमाम नई सेवाएं उनके ही भरोसे आरंभ की गई हैं.
- अरविंद कुमार सिंह
यह दिल दहला देने वाली कहानी है हिटलर के यातना शिविर में इंसानी हैवानियत की पराकाष्ठा झेलते हुए भी मनुष्य की सकारात्मकता ऊर्जा के रहस्य का पता लगाने की अपनी जिद को पूरा करने वाले विश्वविख्यात मनोचिकित्सक डॉ. विक्टर फ्रैंकल की.
डॉ. विक्टर फ्रैंकल. विएना में रहने वाले विश्वविख्यात मस्तिष्क रोग विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक. सिंतबर 1942. हिटलर के जर्मन गेस्टापो ने आधी रात को डॉ. फ्रैंकल को उनके परिवार सहित घर से उठा लिया और उन्हें भेज दिया गया सात-आठ लाख यहूदियों के प्राणों को लीलने वाले ‘ऑश्वित्ज’ नामक भयानक यातना शिविर में! हजारों लोगों की भीड़ में धकेल दिए गए डॉ. फ्रैंकल के पूरे कपड़े उतारकर उनके पूरे शरीर से बाल निकाल दिए गए, उनकी इतने बरसों की पहचान छीन ली गई. बच गई केवल एक संख्या-कैदी नंबर 119104
- वैशाली करमरकर
आज के आधुनिक समय में लोक गायन की मौखिक परंपरा को अपने कबीर गायन से उत्तरोत्तर आगे बढ़ा रहे हैं प्रहलाद सिंह टिपाणियां. पढ़िए उनसे लिया गया दिलचस्प साक्षात्कार.
भारतीय दर्शन व भक्ति काव्य परंपरा का विलक्षण स्वरूप हमेशा से उन लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करता रहा है, जो इसके निर्गुण और सगुण स्वरूपों को आत्मसात करने की कामना रखते रहे हैं. भारतीय लोक मानस में मौखिक परंपरा के रूप में हमेशा से ही प्रवाहमान रही है निर्गुण और सगुण की काव्य धारा. इस घोर आधुनिक समय में भी हमारे सम्मुख कई रूपों में है कबीर की मौजूदगी. लोक और शास्त्रीय से लेकर आधुनिक संगीत तथा विभिन्न कला माध्यमों में कबीर कलाकार, कलाधर्मी और जिज्ञासुओं के लिए आज भी उसी तरह आकर्षक हैं.
- राजेश्वर त्रिवेदी
अब जबकि आजादी के पचहत्तर साल पूरे होने को आ रहे हैैं, पढ़िए देश की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वातंत्र्य वीरों के साक्षात्कार, जो अब बहुत कम संख्या में बचे हैैं.
सारे दल ही अब रास्ते से भटके हुए हैं. न उनके सामने कोई सोच है और न सिद्धांतों पर चलने में उनकी कोई दिलचस्पी. सियासत को इन राजनीतिक पार्टियों ने धंधा बना लिया है. अब एक विचार क्रांति की यह देश मांग कर रहा है. पर, कौन करेगा यह? यह कौन सा देश और कौन सा समाज बनाते जा रहे हैं हम, जिसमें अपने मुल्क को प्यार करने की भावना गायब सी हो रही है. क्या हमने कभी सोचा है कि शहीदों ने देश को आजाद कराने के लिए जाति, धर्म और भाषा की सारी दीवारें तोड़कर संघर्ष किया था. ऐसा लगता है वह सब एक सपना था, जो अब टूट गया है.
- राजेश बादल
जब विमानों का आविष्कार नहीं हुआ था, तब भी पौराणिक आख्यानों का संदर्भ देकर दावा किया जाता था कि हमारे पुरखे विमान उड़ाते थे. अब ड्रोन साकार करेंगे चिड़ियों की तरह उड़ने का इंसान का सपना!
18वीं सदी में हुई थी ड्रोन तकनीक की शुरुआत. जब ऑस्ट्रिया ने वेनिस पर बम से भरे गुब्बारों से बोला था हमला, तो इस्तेमाल की गई थी उसमें ड्रोन तकनीक. प्रथम विश्व युद्ध में भी हुए थे इस तकनीक से हमले. लेकिन बाल्कन युद्ध में पहली बार दिखा आधुनिक ड्रोन का लड़ाकू चेहरा. और फिर आसमानी हमलावरों की तरह प्रयोग में लाईं इन्हें ब्रिटिश और अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान, इराक और पाकिस्तान में. अब तो नजारा ही बदल दिया है ड्रोन ने, जीवन के हर क्षेत्र का.
- अभिषेक कुमार सिंह
जब विमानों का आविष्कार नहीं हुआ था, तब भी पौराणिक आख्यानों का संदर्भ देकर दावा किया जाता था कि हमारे पुरखे विमान उड़ाते थे. अब ड्रोन साकार करेंगे चिड़ियों की तरह उड़ने का इंसान का सपना!
पिछले दिनों विदेश मंत्री डॉ.एस. जयशंकर की जॉर्जिया यात्रा पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गई जब उन्होंने जॉर्जिया की एक पुरानी मांग मानते हुए 17वीं सदी की जॉर्जिया की महारानी संत केतेवन के अवशेष जॉर्जिया सरकार को सौंप दिए. महारानी संत केतेवन के अवशेष लगभग 400 साल पहले कैसे यहां पहुंचे और यह महारानी कौन थीं और उन्हें संत का दर्जा क्यों दिया गया और इन सबसे बढ़कर उनके इन अस्थि अवशेषों की खोज करना, यह अब एक चुनौती जैसा था जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और उसके पुराविदों ने स्वीकार कर नतीजे तक पहुंचाया. महारानी केतेवन से जुड़ी इस खोज को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को भी पलटने की जरूरत है.
- शिवाकांत बाजपेयी
एक बार पुलिस की खाकी वर्दी पहनी कि शुरू हो जाता है मुश्किलों भरा सफर! हर वक्त असंतोष की ज्वाला से धधकते जंगल में घुसकर खोजे गए कुछ रहस्य और कुछ अनुत्तरित सवाल...
पूरी जिंदगी बस तनाव, भागदौड़, तकलीफ और व्यवस्था से मिलती है बस फटकार! तारीफ तो बमुश्किल कभी-कभार ही मिलती है, हां गाली-गलौज रोज की बात होती है! बिलकुल निचले स्तर का पुलिस सिपाही हो या फिर आला अधिकारी, केवल जेब का आकार छोटा-बड़ा, बाकी सिरदर्द तो हमेशा का ही! मलाई खाने के मौके तो बहुत, लेकिन वह खा पाने वाले बिल्ले बस गिनती के. अधिकांश के हिस्से में आता है तो बस वरिष्ठों से अपमान, उपेक्षा और परिवार से दूर ले जाने वाली ड्यूटी!! पुलिस... कुछ व्यवस्था का शिकार होते हैं...कुछ व्यवस्था को ही शिकार बना देते हैं... कभी जिस गुंडे की कॉलर पकड़ी थी, आज उसके नगरसेवक बनकर थाने में आने पर सैल्यूट मारते हुए भीतर ही भीतर की छटपटाहट...
- रवींद्र राऊल
अयोध्या में न कोई बड़ा अपेक्षा भंग होता है और न कोई बड़ी उम्मीद ही होती है. जो जैसा है वैसा ही मंजूर है. राम मंदिर निर्माण के साथ बदलाव की बयार से गुजरते अयोध्या में दस दिन का रिपोर्ताज
शहर कैसा? जिधर देखें उधर गरीबी में सनी अयोध्या, लेकिन लोगों में नाराजगी नहीं, लालच नहीं. गरीबी में भी शांत, केवल अपने तक सीमित, जैसा जमे वैसा, मुस्कुराकर जिंदगी जीते लोग. यहां की सरयू की ही तरह शहर में भी कोई हलचल नहीं.. धीर-गंभीर. शांत बहती नदी. वही अलिप्त भाव यहां के लोगों में भी देखने को मिलता है. लड़-झगड़कर अधिकार के साथ कुछ मांगने जैसी बातें यहां के लोगों में नहीं. पांडे काका बता रहे थे, ‘वनवास तो रामजी का भी था...वो कटने में समय लगता है, कष्ट तो है.. अब रामजी को देखो...उनका अपना घर अयोध्या में कितने बरस नहीं था, अब जाकर घर बनेगा... उन्होंने प्रतीक्षा की, हनुमानजी ने की. तो हम कौन हैं?’ ...जैसा रामजी चाहें!
- मेघना ढोके
चीन से तनातनी के बीच सैनिकों तक राशन, गोला बारूद और रसद पहुंचाना और कोविड काल में मिशन आॅक्सीजन से तीव्र गति से जूझना बेहद अहम था. हमारी वायुसेना ने वह कर दिखाया था.
भारतीय वायुसेना ने चीन की गहरी चाल को बहुत पहले से ही भांप लिया था. हमने अपने लड़ाकू जहाज-मिग, सुखोई एसयू 30, मिराज और जगुआर की फॉरमेशन उड़ान को नए नाम से संबोधन किया है - विजय और ट्रांसफॉर्मर! यह बदलाव की आंधी थी! लड़ाकू जहाज अपने इलाके में रहते हुए पर्वतीय क्षेत्र की उड़ान में अपनी काबिलियत को बेहतर कर रहे थे. लेह हवाई अड्डे से वायुसेना के सी-17 ग्लोबमास्टर और सी-130जे सुपर हर्क्युलिस परिवहन जहाज सैनिकों के लिए आने वाले सर्द मौसम के लिए रसद सामग्री भी ढो रहे थे. भारत के भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर हमारी सुरक्षा की एक बहुत बड़ी जिम्मेवारी वायुसेना पर है - जिसका निर्वहन करने में वायुसेना सक्षम है. इस कार्य में एक बड़ा हिस्सा भारवाहक हवाई बेड़े पर था.
- सारंग थत्ते
युद्ध कई बार मनुष्य के सिर चढ़ जाता है और उसके मनुष्यत्व को उखाड़ फेंकता है. महाभारत की कहानी जब खत्म होती है तो मन को एक शांति व्याप लेती है! -उस शांति का रहस्य हमें ताकत देता है...आज भी!
महाभारत के संहारक युद्ध में अठारह अक्षौहिणी यानी बावन लाख सैनिक एकत्र हुए थे. युद्ध के अंत में पांडवों के सात और कौरवों के तीन यानी कुल दस लोग ही जीवित रह सके. इस युद्ध के विराट जबड़े में सब कुछ खिंचा चला गया... जीवन और गर्भस्थ जीव भी! ऐसा नहीं कि युद्ध में केवल लोग मरते हैं, बल्कि इंसान की इंसानियत भी मरती है. लेकिन मृत्यु से जीवन का प्रवाह नहीं रुकता, वह अविरत आगे जाते ही रहता है. मृत्यु अपरिहार्य है इसलिए सिर्फ उसे स्वीकार करना नहीं, बल्कि मृत्यु के पीछे से जीवन का प्रवाह आ रहा है, यह जानकर उसे स्वीकार करना ही व्यासमुनि की प्रकांड विद्वत्ता का अभिप्राय है.
- अरुणा ढेरे
चोरी का इल्जाम लगना उन्हें अपमानित कर रहा था. उस पर जमकर हुई पिटाई से दोनों गाल लाल हो गए थे और पूरा शरीर दर्द से बेहाल था...पढ़िए हिंदी के कालजयी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी के मार्मिक अंश.
हेडमास्टर साहब को यह पक्का यकीन था कि यह काम अवश्य ही रेणु ने किया है. उन्होंने रेणु पर संदेह इसलिए किया था कि जब डाल्हिया फूल की विशेषता वे क्लास में बता रहे थे तब रेणु ने पूछा था, ‘सर! क्या इस फूल में जरा भी सुगंध नहीं होती ? तब, इस फूल का कोई मूल्य ही नहीं है.’ हेडमास्टर साहब ने कहा था कि इतनी जिज्ञासा तो किसी छात्र में नहीं थी. फिर उन्होंने रेणु से कहा था, ‘तुम उस फूल को जिस तरह ललचाई निगाह से देख रहा था, वैसी नजर तो किसी की नहीं थी.’ रेणु ने तरह-तरह की अपनी सफाई दी, लेकिन हेडमास्टर साहब मानने को तैयार नहीं थे. उन्होंने रेणु के गाल पर जोर-जोर से तमाचे लगाए. फिर छड़ी से पैर, पीठ और हथेली में जोरदार पिटाई की. रेणु रोते-कलपते रहे और गिड़गिड़ाते रहे, ‘सर! ये काम मैंने नहीं किया है.’ लेकिन हेडमास्टर साहब कहां सुनने वाले थे. वे लंबे समय तक पिटाई करते रहे.
-भारत यायावर
अमेरिकन पत्रकार-लेखक जॉन स्टैनबेक की ‘ग्रेप्स ऑफ राथ’ प्रकाशित हुई सन 1939 में. अपने घर-गांव से निकाले गए इस कहानी के किरदारों को उस समय मिला था कुछ ऐसा, जो आज अस्थिरता से थमे इंसानों को राहत देगा!
1930 का दशक. महामंदी की चपेट में आए अमेरिका में एक चौथाई लोग बेरोजगार हो गए. हाथ में काम नहीं, पास में फूटी कौड़ी भी नहीं. इसी बीच धूल भरी आंधियों से त्रस्त ओक्लाहोमा का गरीब, लाचार ज्योड परिवार! पास में मौजूद सबकुछ तोड़कर-बेचकर, एक-एक पैसा इकट्ठा कर एक खटारा गाड़ी खरीदता है और उसमें सारा सामान लादकर, जिंदगी जीने के लिए गांव से बाहर निकलता है... ‘कैलिफोर्निया में पहुंचे तो वहां फलों के बागीचों में कुछ तो काम मिल ही जाएगा!’ बस यही एक उम्मीद की किरण साथ थी! फिर आगे क्या था? क्या उन्हें काम मिलता है? पेट के लिए थोड़ा खाना? आत्मा को थोड़ी खुशी? उनके खेत, उनके मवेशी, बड़ी फिक्र के साथ जतन की हुई और फिर गंवाई चीजें, खुशियों भरे लम्हे, और दुखद, भावनात्मक पल... इन सबका अंत में क्या होता है?
- मेघना भुस्कुटे
पहले मनोरंजन के लिए समय और स्थान की बाध्यता थी. अब बेडरूम के कोने में चादर के नीचे तक ओटीटी की पहुंच हो गई, लिहाजा फायदे-नुकसान का अंदाज फिलहाल तो लग नहीं पा रहा लेकिन चिंताएं स्वाभाविक हैं.
‘ओटीटी प्लेटफॉर्म’ की लोकप्रियता सबसे पहले अमेरिका में बढ़ी थी. शुरुआत में इसे अभिजात्य वर्ग के शौक के रूप में देखा गया, क्योंकि इसमें मुफ्तखोरी के लिए कोई स्थान नहीं था. वहीं दूसरी ओर निजता और चयन की स्वतंत्रता इसकी विशेषता रहे. जिससे धीरे-धीरे विश्व में सभी जगह इसका विस्तार हो गया. इसमें इंटरनेट स्पीड और स्मार्ट टीवी ने भी बड़ी भूमिका निभाई. भारत में इसका विस्तार कोरोना के दौरान लॉकडाउन ने करा दिया. उस समय घर में खाली बैठे लोगों को मनोरंजन की आवश्यकता थी. उनके सामने टेलीविजन पर कोरोना की नकारात्मक खबरों के अलावा कुछ नहीं था. यहीं तकनीकी प्रेमियों ने ‘ओटीटी’ को सहज बताकर उसे मध्यम वर्ग में भी लोकप्रिय बना दिया. अब हालात यह बन चुके हैं कि बड़े परदे के कलाकार भी छत से छलांग लगाकर लोगों के घर-घर में कूदना चाहते हैं. अनेक कलाकारों ने तो पहले और बहुत कम समय में अपनी जगह बना ली है
- अमिताभ श्रीवास्तव
कई पदार्थ अभावों के बीच से बने हैं. हां सही है, ये खाद्य सामग्रियां संकटों से गुजरने का रिटर्न गिफ्ट हैं. पढ़िए विश्वयुद्ध, अकाल, भुखमरी और अभावों से पैदा हुए खाद्यान्न की कहानी
मद्रास इलाके में अकाल की स्थिति के कारण हमें साबूदाने की खिचड़ी मिली! ब्रिटिशों ने चावल गायब किया तो बंगाल में मुरमुरे की भेल-झालमुड़ी बनाई जाने लगी. मिठाई खाना हर किसी के बस की बात नहीं थी तो लोगों को चाय में बिस्कुट डुबोकर खाने का आइडिया सूझा. वर्ष 1928-29 में अमेरिका की भीषण आर्थिक मंदी ने ‘हॉट डॉग’ को जन्म दिया. सुदूर सीमा पर तैनात सैनिकों की भूख-प्यास दूर करने और बासी न होने वाले, गरम करने की जरूरत न पड़ने वाले और झटपट खाने योग्य फास्ट फूड और इंस्टेंट कॉफी की खोज की गई. अचार, जैम, फलों का रस, नाश्ते के लिए पोहा, तरह-तरह के अनाजों की लाइयां-सबकुछ कारखाने में तैयार करके ‘डिब्बाबंद’ हो गया! इतना ही नहीं बल्कि जिस चाट के बिना हमारी शामें बेस्वाद रहती हैं, उस चाट को मुगलकालीन दिल्ली में कॉलरा की महामारी के उपचार के रूप में शाहजहां के शाही हकीम ने उपचार के तौर पर पहली बार बनाया था. अब कहिए जनाब!
- मेघना सामंत
हम लैंडस्कैप को दूसरों से छिप-छिपाकर बनाया करते थे. कोशिश होती थी कि ऐसी जगह बैठा जाए, जहां हमें कोई न देख रहा हो. घास, झाड़ियां-कांटे हटाकर हम बैठ जाते और फिर रंग, पेंसिल, पैड निकालकर शुरू हो जाते.
किसी ढलती हुई शाम में जब सूरज गहरे सुनहरे रंग में तब्दील हो रहा होता तो महामारी के भय से किसी ऐतिहासिक चर्च की मजबूत पत्थरों से बनी दीवारों में भी कंपन सा महसूस होता था. ऐसा लगता कि चर्च की बेल से उठने वाली तरंगें आकाश को छू रही हैं. पेड़ों की शाखाएं ईश्वर से जीवन का वरदान मांगती नजर आतीं. देर तक दिखाई नहीं दे रहा चंद्रमा उसके बाद ही काली रेखा को धारण कर मेरे चित्रों में अवतरित होता. ग्रीटिंग कार्ड जैसे दिखाई देने वाले यह गांव...लेकिन मनुष्यों की अनुपस्थिति दर्शाने वाला मेरा चित्र...मनुष्यविहीन लैंडस्केप... मनुष्यविहीन चित्र...
- चंद्रमोहन कुलकर्णी
यह कहानी किसी भी हश्र के लिए तैयार है क्योंकि इसमें सत्य साबित होने की सारी संभावनाएं हैं और मेरे पास तमाम सबूत हैं. कोई कल्पना का अंश न ढूंढें. कल्पनाएं यहां पानी भरेंगी, ये ऐसा यथार्थ है...
जीवन किसी कहानी सी हो सकता है या उसे किसी कहानी में तब्दील किया जा सकता है, ये इस कहानी के पात्रों ने संभव किया. हो सकता है कोई प्राणी इसे अपनी कहानी समझे. इसके लिए वह स्वतंत्र है. जैसा जीवन होगा, उसकी कथा भी वैसी ही होगी. यह कथा लाइव काल से पहले की है जब फेसबुक और जीमेल पर चैट का सिलसिला शुरू हुआ था और दुनिया इसे भौचक होकर देख रही थी. प्रेमियों के दिल बल्लियों उछल रहे थ. सारे अवैध रिश्ते फलने-फूलने लगे. पहरे हट गए और प्रेम एक खेल बन गया. ये उसी खेल, फरेब और अलगाव की कथा है. जो बाद में पुनर्मिलन की नौटंकी पर खत्म होती है. तो आइए कथा-लाइव शुरू करते हैं...
-गीताश्री
बहुत से लड़के और लड़कियां चाहते हैं कि पोर्न को एक उद्योग के रूप में अब वैध कर दिया जाए. अरबों का कारोबार करनेवाली चोर दुनिया की खिड़की खोलकर अगर कोई प्रवेश करे तो क्या दिखाई देता है?
दो-चार लोगों साथ सरेआम न तो उसे देखना है और न ही उसका कहीं जिक्र ही करना है, इस तरह के अश्लील वीडियो की यह दुनिया. पूरी दुनिया में फैले और भारत में प्रतिबंध के बावजूद तेजी से बढ़ने वाली. कहते हैं कि इस इंडस्ट्री में अरबों डॉलर का कारोबार होता है, ये पैसा कोई किसी की जेब से कैसे निकालता है? इस तरह का काम करनेवाले शायद किसी के दबाव में ही ऐसा करते होंगे, क्या ऐसी सोच सही है? यहां अपनी इच्छा से आनेवाले, दबाव में आकर आनेवाले और यहीं के होकर रहनेवाले भी काफी लोग हैं. अस्थायी व्यवस्था के रूप में कम समय में धन प्राप्त करने के लिए काम करनेवाले भी इसी दुनिया में बस जाते है, ऐसा क्यों? कारण?- अनुभव से उनमें आनेवाला लचीलापन और निश्चित रूप से पैसा! इसमें अनैतिक क्या है? ...और नैतिक क्या है?
-मनोज गडनीस