अयोध्या में न कोई बड़ा अपेक्षा भंग होता है और न कोई बड़ी उम्मीद ही होती है. जो जैसा है वैसा ही मंजूर है. राम मंदिर निर्माण के साथ बदलाव की बयार से गुजरते अयोध्या में दस दिन का रिपोर्ताज
शहर कैसा? जिधर देखें उधर गरीबी में सनी अयोध्या, लेकिन लोगों में नाराजगी नहीं, लालच नहीं. गरीबी में भी शांत, केवल अपने तक सीमित, जैसा जमे वैसा, मुस्कुराकर जिंदगी जीते लोग. यहां की सरयू की ही तरह शहर में भी कोई हलचल नहीं.. धीर-गंभीर. शांत बहती नदी. वही अलिप्त भाव यहां के लोगों में भी देखने को मिलता है. लड़-झगड़कर अधिकार के साथ कुछ मांगने जैसी बातें यहां के लोगों में नहीं. पांडे काका बता रहे थे, ‘वनवास तो रामजी का भी था...वो कटने में समय लगता है, कष्ट तो है.. अब रामजी को देखो...उनका अपना घर अयोध्या में कितने बरस नहीं था, अब जाकर घर बनेगा... उन्होंने प्रतीक्षा की, हनुमानजी ने की. तो हम कौन हैं?’ ...जैसा रामजी चाहें!
- मेघना ढोके